Javed Akhtar shayari:
हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी
जावेद अख़्तर
गजल
Javed akhtar shayari
हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी
क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी
बिछड़ के डार से बन बन फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
मोहब्बत मर गई मुझ को भी ग़म है
मिरे अच्छे दिनों की आश्ना थी
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाए सोना
तुझे देखा तो जाना बद-दुआ' थी
मरीज़-ए-ख़्वाब को तो अब शिफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
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